FOLLOW ON TWITTER

Sunday, February 11, 2018

आज

आत्मा परमात्मा जीवन मरण के विषय में सोचता मानव न जाने कितने जन्मों से भटक रहा है। अनेकों पुस्तकें और दर्शन शास्त्र लिखे जा चुके हैं। किन्तु सत्य ये है कि हमारी सीमित सम्भावनाये हैं. हमारी मानवीय मानसिक क्षमताएं हैं। और सभी जीवों की एक सीमा होती है सोचने समझने की। अतः इस विषय में सोच सोच कर एक अवस्था को प्राप्त हुआ जा सकता है। मानो ये ऐसा ही जैसे धुंए के बादलों में हम नाच रहे हों और कुछ भी न दिखता हो फिर भी सत्य या वास्तविकता के विषय में परिकल्पनाएं कर रहे हों। कुछ संभावनाओं के विषय में सोचा जाता है तर्क दिए जाते हैं। और प्रमाण भी मिलते हैं तो विज्ञानं बन जाता है। किन्तु आध्यात्मिकता में सब कुछ अनुभव से प्रमाणित एक रहस्य है जो सौन्दर्य जैसा है। इसी में बंधनयुक्त मानव मुग्ध हुआ बस जीवन यात्रा करता रहता है। चैतन्य व्यक्ति स्वाभाविक है जाग्रत ही कहलाता है। बहुत अधिक संवेदन शीलता व्यक्ति को आहत भी करती है जबकि आनंद की प्राप्ति भी इसी चैतन्यता से होती है। आइये बस कुछ सोचें ने सम्भावनाओ के विषय में -नए प्रमाण नए तर्क। किन्तु प्रश्न फिर भी अधूरे रहेंगे। यही तो रहस्य है। ज्ञान जितना बढ़ता है उतनी ही जिज्ञासा भी। और अचानक हमे पता चलता है -अभी भी हम शून्य हैं ज्ञान के अथाह सागर के सम्मुख। सत्य है ये सागर धुएं के समान है किन्तु अपनी वास्तविकता या यथार्थ को न छोड़ें व् वर्तमान में रहें ये आवश्यक है।  हमारे लिए आज का दिन और यही क्षण सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।